Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

वतन पे जो फिदा होगा….

सब जानते हैं कि हमारे देश में सिनेमाई सफर की शुरुआत ब्रिटिश हुकूमत के दौर में हुई थी। इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि सामजिक-राजनैतिक हालत का असर फिल्मों पर पड़ता। मूक फिल्मों के दौर में तो राष्ट्रीय चेतना को अभिव्यक्ति ज्यादातर पौराणिक किरदारों से मिली, लेकिन भारतीय फिल्मों को जैसे ही आवाज मिली, उन्होंने […]
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

ब जानते हैं कि हमारे देश में सिनेमाई सफर की शुरुआत ब्रिटिश हुकूमत के दौर में हुई थी। इसलिए यह स्वाभाविक ही था कि सामजिक-राजनैतिक हालत का असर फिल्मों पर पड़ता। मूक फिल्मों के दौर में तो राष्ट्रीय चेतना को अभिव्यक्ति ज्यादातर पौराणिक किरदारों से मिली, लेकिन भारतीय फिल्मों को जैसे ही आवाज मिली, उन्होंने राष्ट्रीयता के गौरव गीत गाकर स्वतंत्रता आन्दोलन को गति दी। चालीस के दशक में व्ही शांताराम की फिल्म ‘बंधन’ का गीत ‘चल चल रे नौजवान’ पूरे देश को जोश से भर देने वाला गीत था। अपने गीतों को राष्ट्रीयता का स्वर देने के लिए मशहूर कवि प्रदीप का लिखा गीत ‘दूर हटो ए दुनिया वालो हिंदुस्तान हमारा है’ (फिल्म-किस्मत/ 1943) अंग्रेजों को बहुत नागवार गुजरा था। खास बात यह थी कि प्रदीप ने ये गीत एक दूसरे प्रसिद्ध हिन्दी कवि बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ की कविता ‘कोटि-कोटि कंठों से निकली आज यही स्वरधारा है’ से प्रभावित होकर लिखा था। 1944 की फिल्म ‘पहले आप’ में नौशाद का संगीतबद्ध गीत ‘हिन्दुस्तान के हम हैं’ में राष्ट्रीय एकता को बल देने वाली अभिव्यक्ति थी। इसी गीत  से मोहम्मद रफी ने हिन्दी फिल्मों के लिए पाश्र्वगायन की शुरुआत की थी। रफी ने देशभक्ति की भावना वाले कई गीतों को अपना स्वर दिया, जिनमें खास हैं- ‘ये देश है वीर जवानों का’ (नया दौर), ‘वतन पे जो फिदा होगा अमर वो नौजवां होगा’, ‘अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं’ (लीडर), ‘उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता, जिस मुल्क की सरहद की निगहबान हैं आंखें’ (आंखें) वगैरह। फिल्म इंडस्ट्री में प्रेम धवन भी ऐसे गीतकार के तौर पर याद किए जाएंगे, जिन्होंने ओजपूर्ण देशभक्ति गीत लिखे। प्रेम धवन केवल देशभक्ति के गीत लिखने तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने अभिनेता सुनील दत्त और नरगिस के साथ लद्दाख और नाथुला का दौरा करके देशभक्ति के गीतों से सैनिकों का मनोरंजन भी किया। वर्ष 1965 में प्रदर्शित भारत-चीन युद्ध पर बनी निर्माता-निर्देशक चेतन आनन्द की फिल्म ‘हकीकत’ में कैफी आजमी का लिखा देशभक्ति का एक गीत ‘कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियो’ को सुनकर श्रोताओं के मन में आज भी राष्टï्रप्रेम की हिलोरें उठने लगती हैं।

देश के आजाद होने के बाद आवाम में जो खुशी थी, वो फिल्मी गीतों में भी छलकी, लेकिन आजादी मिलने के छह महीने बाद ही देश महात्मा गांधी की हत्या के शोक में डूब गया था। इस दौरान बापू की याद में भी कुछ गीत लिखे गए। राजेंद्र कृष्ण के लिखे गीत ‘बापू तेरी अमर कहानी’ को रफी जिस ऊंचाई पर ले गए, वो उन्ही की बात थी। चूंकि आजादी एक बहुत बड़ी खुशी का पैगाम लेकर आई थी और साथ ही साथ ये कीमती भी थी, इन दोनों ही बातों को शब्दों में ढाला गया। इसी क्रम को आगे बढ़ाता है फिल्म ‘जागृति’ (1954) का यह गीत- ‘हम लाये हैं तूफान से कश्ती निकाल के’ या फिर यह गीत- ‘दे दी हमें आजादी बिना खड्ग बिना ढाल’। बी.आर. चोपड़ा की फिल्म ‘नया दौर’ के गीत ‘ये देश है वीर जवानों का’ में तो जैसे उल्लास अपने उफान पर है। नितिन बोस की फिल्म ‘गंगा जमुना’ का गीत ‘इंसाफ की डगर पे बच्चो दिखाओ चलके’ ऐसा ही एक गीत था, जिसमें नई पीढ़ी को उसके दायित्वों का अहसास कराया गया था। दूसरी तरफ फिल्म ‘सन ऑफ इंडिया’ का गीत ‘नन्हा-मुन्ना राही हूं’ इस बात को दिखाता है कि अगली पीढ़ी जिम्मेदारियों को उठाने के लिए तैयार है।
वर्तमान दौर रीमिक्स का दौर है। जाहिर है, तमाम देशभक्ति के गीतों का भी रीमिक्स वर्शन तैयार होता रहा है। हिंदी फिल्मों ने लोगों में देशभक्ति का जज्बा पैदा करने का काम बखूबी किया है। वैसे भी बॉलीवुड के संगीतकारों को गानों को अलग-अलग तरीके से रीमिक्स करने की आदत-सी हो गई है। कई बार यह प्रयोग लोगों को पसंद आता है, लेकिन गाने को ज्यादा ग्लैमराइज करने के चक्कर में कई बार उसे अटपटा भी बना दिया जाता है। कुछ ऐसा ही ‘वंदे मातरम्’ के साथ भी हुआ, जब भारत बाला ने उसे अपने अंदाज में बनाने का फैसला किया। लोगों ने इस प्रयोग पर एतराज उठाए। ए. आर. रहमान ने भी ‘वंदे मातरम्’ को अपने अंदाज में ढालने की कोशिश की।
फिल्मों से लिए गए देशभक्ति गीत हर राष्ट्रीय समारोह का मुख्य आकर्षण बनते हैं। लेकिन इनका परिचय मात्र इतना नहीं है। दरअसल ये गीत हमारी राष्ट्रीय चेतना को सींचने वाले स्रोत हैं। इन गीतों के जरिए ही बच्चे अपने देश के गौरवपूर्ण अतीत को समझते आए हैं, युवा इनसे प्रेरित होते रहे हैं और बुजुर्गों को इन्हें सुनकर संतुष्टि मिलती है। इस प्रकार ये गीत हमारे अन्दर वतनपरस्ती की भावना को मुखर बनाते हैं।
—रेखा

Advertisement

Advertisement
×